मुरव्वत ही मुरव्वत है, मस्सर्रत ही मस्सर्रत है
हमें तुमसे, तुम्हें हमसे, अगर सच्ची मुहब्बत है
यही अपनी परस्तिश है, यही अपनी इबादत है
हमें तुमसे, तुम्हें हमसे, अगर सच्ची मुहब्बत है
अगर सच्ची मुहब्बत है, तो डर किस बात का साथी !
अगर दिल साफ़ है साथी, तो डर किस बात का साथी !
हों कितने आग के दरिया मगर हम पार कर लेंगे
तुम्हारे हम, हमारे तुम, तो डर किस बात का साथी !
हमें तुमसे, तुम्हें हमसे, अगर सच्ची मुहब्बत है
यही अपनी परस्तिश है, यही अपनी इबादत है
हमें तुमसे, तुम्हें हमसे, अगर सच्ची मुहब्बत है
अगर सच्ची मुहब्बत है, तो डर किस बात का साथी !
अगर दिल साफ़ है साथी, तो डर किस बात का साथी !
हों कितने आग के दरिया मगर हम पार कर लेंगे
तुम्हारे हम, हमारे तुम, तो डर किस बात का साथी !
3 comments:
तुम्हारे हम ,हमारे तुम,
है डर इस बात का साथी ...
मेरा साईज है चूहे सा,
तुम्हारा साईज है हाथी..
अलबेला जी अपनी श्रीमाती जी के लिए तो मैं ये लाइन भी पढ़ कर साथ सुनाऊंगा..
बहुत खुब!!
वाह लाजवाब.
रामराम.
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