गणपत भाई को मुफ़्त का माल दबाके खाने की और सुबह सुबह बगीचे में टहलने की आदत है । एक दिन टहलते हुए उन्हें अचानक लगा कि रात का खाया हुआ माल पूरी तरह जाग्रत होगया है और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अड़ गया है , जल्दी ही उसे आज़ादी न मिली तो विद्रोह कर देगा इसलिए जल्द से जल्द घर जा कर उसे मुक्ति देनी ज़रूरी है लेकिन संकट ये था कि घर दूर है और देह मजबूर है ।
जब पेट पूरी तरह बगावत पर उतर आया तो हालत से मजबूर बेचारे वहीं एक कोने में बैठ गए 'गुडमोर्निंग' केलिए, तभी हवलदार ने उन्हें दबोच लिया और वह बोर्ड दिखाया जिस पर लिखा था कि यहाँ यह करना मना है ।
हवलदार : चलो मेरे साथ......................
गणपत : हाँ हाँ चलो, मैं कपड़े ठीक करता हूँ तब तक तुम सबूत उठालो हवलदारजी ...
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
5 comments:
जोर से हँसी आ गई. आस पास के लोग देखने लगे तो मूँह दबा लिया.
ये नगर पालिका वाले भी बड़े वाहियात किस्म के लोग होते है, दूसरे की मजबूरी क्या है, जब तक इनकी खुद को ना धोनी पड़ जाए नहीं समझते ! बस दीवार पर लिख देंगे, "देखो गधा....."! इन दुर्जनों को कौन समझाए कि केवल गधा ही.... सकता है क्या ? अब भला, बिना सुलभ सौचालय बनाए इन्हें बोर्ड टांगने की जरुरत क्या थी ?
:)
हँसी तो बेतहाशा आई, पर नाक पर रुमाल भी रखना पड़ा।
बहुत बढिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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