कहीं परबत, कहीं राई, कहीं ज़्यादा कहीं कम है
कहीं सैलाब आँसू के, कहीं सिसकी की शबनम है
जहाँ में जो भी दिखता है उसी की आँख पुरनम है
यहाँ ग़म है, वहां ग़म है, जहाँ देखो वहां ग़म है
ग़मों की इस सियाही में दीया हमको जलाना है
अन्धेरे में जो बैठे हैं उन्हें रौशनी में लाना है
है ऋण हम पर शहीदों का सुभाषों का, हमीदों का
उन्हीं के ख़्वाबों का गुलशन हमें मिलकर सजाना है
कहीं सैलाब आँसू के, कहीं सिसकी की शबनम है
जहाँ में जो भी दिखता है उसी की आँख पुरनम है
यहाँ ग़म है, वहां ग़म है, जहाँ देखो वहां ग़म है
ग़मों की इस सियाही में दीया हमको जलाना है
अन्धेरे में जो बैठे हैं उन्हें रौशनी में लाना है
है ऋण हम पर शहीदों का सुभाषों का, हमीदों का
उन्हीं के ख़्वाबों का गुलशन हमें मिलकर सजाना है
4 comments:
शब्द ही मानसपटल से गायब हो गये एक ही शब्द मानस मे है ....वाह..वाह...वाह...वाह
vah vah tusi tan punjabi vi chokhi jande ho badi sohni gal kahi hai tusan da dhanvad
albela ji aaj kuch gadbad hai kisi taraf ka comment kisi aur rachna par diya gaya pahle yahan punjabi me nazar aayee jab dekha to comment hindi vali rachna par thaa chalo koi baat nahin comment to comment hi hai na ha ha ha
albela ji , is rachna ke liye aapko salaam bajata hoon .. kabool kare bhai
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