ऐ बेईमान मालियो ! चमन न बेचना
गांधी के बेटो,गांधी का क़फ़न न बेचना
भारत के हुक्मरानो, ये विनती है आपसे
कुर्सी बचाने के लिए वतन न बेचना
गांधी के बेटो,गांधी का क़फ़न न बेचना
भारत के हुक्मरानो, ये विनती है आपसे
कुर्सी बचाने के लिए वतन न बेचना
13 comments:
बहुत बडिया मगर सुनता कौन है फिर भी कलम का कर्तव्य है कि वो आवाज़ देती रहे जगाती रहे आभार्
बहुत खूब अलबेला भाई। कहते हैं कि-
अमन चोर देखो अमन बेचते हैं।
कफन चोर देखो कफन बेचते हैं।
पहरूआ बनाया जिसे जन वतन का,
वो दिल्ली में बैठे वतन बेचते हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
वाह बंधुवर
bahut hi badhiya
बहुत सही कहा आपने.
रामराम.
टेंडर निकल चुका और आप न बेचने की दुहाई दे रहे हो....
achhi shuruvaat hai...shuruvaat isliye keh raha hoon ki mujhe aisa lag raha hai ki sis tarz pe ek achhi khaasi kavita likhi ja sakti hai agar aap is kavita ko aage badaa de :)
kabhi mere blog par apni masti lekar aaye...
www.pyasasajal.blogspot.com
Too late Albelaa Ji!!!!
Vatan to bik hi chukaa..
Nahin to ek Itaavali Waitress kaise hamaare upar hukum chalaatee????
पता नही कोई इस बात पर अमल करेगा या नही?
यह कमीने तो अपनी मां भी बेचने को तेयार है
अगर कलम इसी रफ्तार से चलती रही और इस तरह के मुद्दे उठते रहे तो वतन के रखवालों की संख्या में कमी नहीं आएगी . . .
अब बेचने को बाकी बचा क्या है बंधु
आदरणीय अलबेला जी,
आपको एक अलसी गीत भैंट करता हूँ।
चन्दन सा बदन चंचल चितवन
धीरे से तेरा ये मुस्काना
गोरा चेहरा रेशम सी लट
का राज तेरा अलसी खाना.........
तुझे क्रोध नहीं आलस्य नहीं
तू नारी आज्ञाकारी है
छल कपट नहीं मद लोभ नहीं
तू सबकी बनी दुलारी है
जैसी सूरत वैसी सीरत
तुझे ममता की मूरत माना........
तू बुद्धिमान तू तेजस्वी
शिक्षा में सबसे आगे है
प्रतिभाशाली तू मेघावी
प्रज्ञा तू बड़ी सयानी है
नीले फूलों की मलिका तू
तुझे सब चाहें जग में पाना.......
चन्दन सा बदन चंचल चितवन
धीरे से तेरा ये मुस्काना
गोरा चेहरा रेशम सी लट
का राज तेरा अलसी खाना......
डॉ. ओ.पी.वर्मा
अलसी चेतना यात्रा
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