रात न ढले तो कभी
भोर नहीं होती बन्धु
सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है
लोहू तो निकाल सकता
तेरे पाँव में से
कांच से मगर घाव कम नहीं होता है
जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है
सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है
4 comments:
सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है
अति सुंदर ।
जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है ..........
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती को ही
खुद मौत माँगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
श्याम सखा ‘श्याम;
बहुत जल्द पूरी गज़ल गज़ल के बहाने पर मिलेगी मेरा एक अन्य ब्लॉग
http//:katha-kavita.blogspot.com पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
वह अल्बेला जी आपकी तरह रचना भी अलबेली है
सच मानो जब तक पीर का कागज़ ना हो
कवि की कलम का जन्म नहीं होता
पूरी रचना सुन्दर ह
www.veerbahuti.blogspot.com
ज़िन्दगी शृंगार है, दोस्ती है ..प्यार है ...
प्रेम के फूल खिलाऊंगा,गीत ख़ुशी के गाऊंगा
खूबसूरत शेर है ................ जीवन में फूल खिलाना ही तोजीना है...........लाजवाब अलबेला जी
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