तो बन्धुओं और बन्धुनियों ,
अपन तो चले ..........सफर पे
लेकिन सच कहूँ तो चैन नहीं आएगा ।
जब तक लखनऊ पहुँच कर किसी सायबर कैफ़े में बैठ के,
ब्लॉग नहीं खोलूँगा और आपकी टिप्पणियां नहीं पढूंगा .........
क़सम kaitreena kaif ki
मुझे chay bhi achhi nahin lagegi .......
2 ko lucknow aur 3-4-5 ko banaras se hi
aapke saath sampark rakhoonga
-albela khatri
092287 56902
लोजी चले अपन तो सफर पे..............
Labels: अपनी बात
क़ानून बदल दिया जाता है..........
वाहनों में लुटती है
आबरू जहाँ पे यारो
दफ़्तर में घुस के क़तल किया जाता है
पटना,निठारी जहाँ
नन्हे-नन्हे मासूमों को
रौन्द दिया जाता है मसल दिया जाता है
फँसते हैं नेता जब
कानून के घेरे में तो
क़ानून पे क़ानून बदल दिया जाता है
मेरा देश वही है
जहाँ पे रात दिन बन्धु
मार-काट-लूट-चोरी-छल किया जाता है
Labels: छंद-घनाक्षरी
अभी खंजर सलामत है !
न जाने क्या मुसीबत है न जाने क्या क़यामत है
नज़र आएगा नूर-ए-कल तसव्वर ला ज़मानत है
तशद्दुद इस क़दर हावी दहर पै हो गया यारो
बशर है चीज क्या यां तो ख़ुदा भी बे हिफाज़त है
अगर ज़िन्दा जलाता तो न जाने क्या हुआ होता
सितम इतना भी न करना सितमगर की शराफ़त है
तमाशा क्या है 'अलबेला' मेरे ज़ेहन से बाहर है
बशर तो मर गया लेकिन अभी खंजर सलामत है
Labels: ग़ज़लनुमा
हास्य और आनन्द की बातें करें............
फूल की बातें करें, मकरन्द की बातें करें
गीत की बातें करें और छन्द की बातें करें
द्वेष ने बारूद पर बैठा दिया है आदमी
आइये,हम हास्य और आनन्द की बातें करें
Labels: मुक्तक
राम राज कब आयेगा ?
बड़ा शोर मचा था चुनाव के दिनों में । कोई कह रहा था ....
समाजवाद आयेगा , कोई कह रहा था - राष्ट्रवाद आयेगा,
कोई कह रहा था - राम राज आयेगा ....ये बात मेरी इकलौती पत्नी
ने सुन ली ।
मज़ाक में बोली - क्यों रे !
अपने घर में राम राज कब आयेगा ?
मैं बोला - कोई रावण तुझे ले के जायेगा और वापस ले के
नहीं आयेगा .....तब आयेगा ..................हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
राखी सावंत गई मनो चिकित्सक के पास .....
राखी सावंत - ऐसी कोई गन्दी बीमारी तो नहीं है ....लेकिन मुझे
लगता है आजकल मैं कुछ ज़्यादा ही घमण्डी हो गई हूँ ...........
मनो चिकित्सक - आपको ऐसा क्यों लगता है ?
राखी सावंत - क्योंकि मैं जब भी दर्पण देखती हूँ तो
मुझे लगता है कि अक्खी दुनिया में मुझसे ज़्यादा सुन्दर
कोई भी नहीं है .......न ऐश , न सुष , न दीपिका, न कैटरीना.......
मनो चिकित्सक -तब तो घबराने की कोई बात नहीं ,
दरअसल आप घमण्डी नहीं ...........
वहमी हो गई हैं ....... हा हा हा हा हा हा
रोज़ सुबह उठते ही हिन्दी ब्लोगर प्रिया की प्रोफाइल में
उसका फोटो देख लिया करो ...ठीक हो जाओगी .....हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
लालू यादव की एक ही इच्छा
लालू यादव की एक ही इच्छा
साधू यादव चलाये रिक्शा
___________हा हा हा हा हा हा हा
Labels: सामयिक तुकबंदी
राज भाटिया को लगे ज़ोरदार झटके .............
राज भाटियाजी को ताऊ रामपुरियाजी ने घर पे बुलाया।
भाटियाजी पहुंचे तो ताईजी ने बड़ा अच्छा - अच्छा भोजन कराया ।
राजजी - थैंक्स ताईजी.......आपने भोजन बहुत अच्छा कराया ....
ताईजी - हमारे यहाँ तो खाना अच्छा ही बनता है । क्योंकि हमारे
यहाँ खाना गैस पर नहीं, इलैक्ट्रिक हीटर पर बनता है ।
राजजी - मुझे तो पहले ही शक था कि आपके यहाँ खाना
इलैक्ट्रिक हीटर पर ही बनता होगा .........
ताईजी - आपको कैसे शक हुआ ?
राजजी - खाते वक्त ज़ोर ज़ोर से झटके जो लग रहे थे ..........हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
बांहों में भर ले बलम हरजाई...............
तू ही बरस जा बलम हरजाई
ननद निगौड़ी बाज़ न आए
दरवज्जे पर कान लगाए
सरका दे खटिया,
बिछाले चटाई ...............बाहों में भर ले ...........
तू मेरा राजा, मैं तेरी रानी
अब काहे की आना-कानी
काहे का डर
मैं हूँ तेरी लुगाई .............बाहों में भर ले ..........
मेरे दिल का दरद न जाने
मैं जो कहूँ तो बात न माने
बाबुल ने ढूँढा है
कैसा जमाई ..................बाहों में भर ले ............
तेरे ही नाम की बिन्दिया-काजल
झुमका ,कंगना,बिछुआ,पायल
तेरे ही नाम की
मेंहदी रचाई .................बाहों में भर ले ..............
अपना हो के यूँ न सज़ा दे
प्यासी हूँ मैं मेरी प्यास बुझा दे
मर जाऊंगी वरना
राम दुहाई .....................बाहों में भर ले.................
Labels: गीत-शृंगार
ऐसा धन बेकार है................
दया धर्म का भाव न जिसमे, ऐसा मन बेकार है
पड़ा तिजोरी में सड़ जाए,
किन्तु समाज के काम न आये
मेज पे रख कर आग लगादो ऐसा धन बेकार है
_______________इसे गम्भीरता से न लेना भाई ...........
मुझे तो यों ही ऊँची- ऊँची फैंकने की आदत है ....हा हा हा हा हा हा
Labels: मुक्तक
हँसते रहे हैं लोग...........
दलदलों में प्यार की धंसते रहे हैं लोग
दर्दो-ग़म के जाल में फंसते रहे हैं लोग
बन के दीवाने, ज़माने में भटक रहे हैं
ख़ुद ही जलाके आशियाँ, हँसते रहे हैं लोग
Labels: मुक्तक
जय माता दी !
तुम्हारे दरबार
मन में लगा कर ध्यान तुम्हारा
बोलें जय
मैयाजी हम ........
हम सब तेरे बालक मैया, तू सबकी महतारी
तेरी एक झलक पे माता ये जीवन बलिहारी
इन नैनों की प्यास बुझाजा
मैया पल भर को ही आ जा
तेरे लाड़ले करें पुकार ................मैयाजी हम
आज तलक तेरे द्वारे से भक्त गया न
उस पर कोई आंच न आये जिसकी तू हो वाली
तेरी महिमा सब से न्यारी
तेरी आरती जिसने उतारी
उसका हो गया बेड़ा पार .............मैयाजी हम
जगदम्बे ! तेरे चरण कमल से फूटे नेह के धारे
भले-बुरे, धनवंते-निर्धन सब हैं तुझ को प्यारे
माता तू ममता की मूरत
बड़ा शुभ है आज मुहूरत
आ जा ...सिंह पे हो के सवार .......
मैयाजी हम आये
तुम्हारे दरबार
मन में लगा कर ध्यान तुम्हारा
बोलें जय जयकार
Labels: भजन
धन्यवाद अनुराग चतुर्वेदी ! धन्यवाद अनुरागी तूलिका !
प्रख्यात, विख्यात और कुख्यात कार्टूनिस्ट अनुराग चतुर्वेदी ने
राग में अथवा अनुराग में आकर
मेरे दो कार्टून बना कर भेजे हैं ।
मैं इनका हृदय से स्वागत करता हूँ ..............
आप भी देखिये मेरा थोबड़ा कित्ता सुन्दर है ...... हा हा हा हा हा हा हा हा
कार्टून ऐसा चाहिए , जो अनुराग बनाय
दर्शक तुरन्त प्रभाव से, लोट पोट हो जाय
-अलबेला खत्री
Labels: अपनी बात
मुरारी पारीक कृपया मेरे घर की चिन्ता न करें
अभी - अभी मुरारी पारीकजी ने मुझे सलाह दी है कि मैं
बनारस जाने वाली बात अपनी पत्नी को न बताऊँ क्योंकि
यदि उसने साड़ी मंगाली तो वाट लग जायेगी
कारण कि वहाँ साड़ी महँगी मिलती हैं । मैं उनसे कहना चाहता हूँ
कि आप मेरे घर की चिन्ता बिल्कुल न करें क्योंकि मेरी पत्नी
बहुत ..........ही..........कंजूस है, इतनी कंजूस है कि पूछो मत ।
एक बार मैंने कलकत्ता से 6000 की साड़ी खरीद कर
उसके लिए भेजी लेकिन फोन पर बताया कि सिर्फ़ 600 की है ,
पहन लेना ...अच्छी लगे तो बोलना और भी भेज दूंगा क्योंकि
मैं जानता था कि 6000 की बता दूंगा तो 6 जनम तक
नहीं पहनेगी ....,,इसलिए कुछ दिन बाद मैंने फोन किया
कि कैसी रही साड़ी ?
वो बोली - बहुत ही अच्छी ....मज़ा आगया.... आपने जो 600 में
खरीदी थी वो मैंने यहाँ 800 में बेच दी है,
100-200 साडियां और ले आओ , बहुत कमाई हो जायेगी
................हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
रतन सिंह शेखावत और सीकर की मुर्गी
रतन सिंह जी शेखावत जितने सुन्दर दिखते हैं
उतना ही अभिनव लिखते हैं । राजस्थान की रत्नगर्भा धरती के
ये उर्जस्वित सपूत एक दिन सीकर नगर में सुबह सुबह
टहल रहे थे । संयोग से मैं भी इनके साथ था। तभी मैंने देखा
एक मासूम सी मुर्गी दौड़ती हुई निकली जिसके पीछे एक
मवाली टाइप मुर्गा पड़ा हुआ था । मुर्गी आगे-आगे , मुर्गा पीछे-पीछे ।
अचानक मुर्गी बेचारी एक वाहन के नीचे आकर तड़पते हुए मर गई ।
मुझे बड़ा दुःख हुआ ।
मैंने कहा - कुंवर साहेब अच्छा नहीं हुआ ।
वे बोले - बहुत अच्छा हुआ ।
मैंने कहा - गरीब मुर्गी की जान चली गई, इसमे अच्छा क्या है ?
वे बोले - जान को मारो गोली , आन को देखो ....ये सीकर की मुर्गी है ,
सीकर की ... यानी राजस्थान की ....इसने अपनी जान दे दी पर
इज्ज़त नहीं दी .............हा हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
समीर लाल जी , शराब और गधा ......
हम सब के चहेते समीर लाल जी अपने परिवार सहित
उड़न तश्तरी में यात्रा कर रहे थे । यों ही मज़ाक के मूड में
भाभीजी ने पूछा - क्योंजी, एक बात तो बताइये...
समीरजी - पूछिए ...
भाभीजी - कल्पना करो.... कि गधे के सामने पानी भी है
और शराब भी...बताओ वो क्या पीयेगा ?
समीरजी - इसमे कल्पना करने की क्या ज़रूरत है,
अलबेला खत्री के सामने रख के ही देख लो ...वो पानी पीयेगा ....
गधा है न , गधा ही रहेगा......हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
1 को शाम-ए-अवध....... 4 को सुबह-ए-बनारस
हास्य हंगामा की अगली महफ़िल
जमेगी उत्तर प्रदेश में ।
01 जुलाई को लखनऊ के पास बहराइच में ।
04 जुलाई को बाबा भोलेनाथ के बनारस में ।
_02 को लखनऊ और 03 जुलाई को
banaaras me rahoonga ...tab
मैं वहाँ के अपने
ब्लोगर बन्धुओं से भेन्टवार्ता का अभिलाषी हूँ ।
यदि सम्भव हो तो कृपया वहाँ के ब्लोगर मित्र
मुझे फोन पर या ईमेल पर
सूचित करने की कृपा करें ।
आपसे मिल कर मुझे आत्मिक ख़ुशी होगी ।
सधन्यवाद ।
विनम्र ,
-अलबेला खत्री
मोबाइल : 092287 56902
email :
info@albelakhatri.com
web site : www.albelakhatri.com
Labels: अपनी बात
माँ मरुधर का अधर जयपुर !
Labels: वर्णन काव्य
राज भाटिया जी की निराली अदा..............
राज भाटियाजी की नई नई शादी हुई थी।
शादी के अगले दिन पति -पत्नी दोनों मन्दिर गए।
लेकिन भाईजी ने भाभीजी को बाहर ही खड़ा कर दिया,
ख़ुद अकेले ही दर्शन कर के आ गए ।
ताऊ रामपुरिया ये देख रहे थे । उन्होंने भाटिया जी से कहा-
- कमाल करते हो यार ! कल तुम्हारी शादी हुई है । आज पहली बार
जोड़े से मन्दिर आए हो और अपनी श्रीमतीजी को
बाहर ही खड़ा कर दिया ?
भाटिया जी बोले - ताऊ इसमे मेरी कोई भूल नहीं है .....
वो देखो मन्दिर के आगे साफ़ साफ़ लिखा है
==नशीली चीज़ें अन्दर लेजाना मना है ........हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
अब मैं हरकीरत हक़ीरजी से क्या कहूँ भाई ?
अभी अभी आदरणीय हरकीरत हक़ीरजी ने पहली बार
मुझे एक टिपण्णी मेरे ब्लॉग पे प्रकाशित राजनैतिक पैरोडी पर दी है:
| show details 10:59 PM (12 minutes ago) |
अरे वाह ....आप इतने दिनों से कमेन्ट दे रहे हैं और मैंने आज जाना आपको .....आप तो कामेडी के बादशाह हैं ......फिर भी मेरी दर्द भी नज्में पढने आते हैं ...कमाल है ....!!!!!
Posted by Harkirat Haqeer to Albelakhatri.com at June 27, 2009 10:13 ऍम
हरकीरत हक़ीरजी का अचम्भित होना स्वाभाविक है ।
मैं एक हास्य कवि और हास्य कलाकार हूँ तो फ़िर
उनकी दर्द भरी नज़्में क्यों पढ़ता हूँ ?
हरकीरत जी के रूप में मैं आज तमाम ब्लॉगर देवीयों और सज्जनों को
बताना चाहता हूँ कि मैं भी एक संवेदनशील कवि हूँ
और इसका उदाहरण मैं लगभग रोज़ ही अपनी रचनाओं के माध्यम से देता हूँ ।
और एक ख़ास बात .............जहाँ तक हो सके ....मैं सभी की सारी
रचनाएं पढ़ता हूँ और टिपण्णी करता हूँ । इसलिए नहीं कि बदले में वे भी
मुझे टिपण्णी दें ......बल्कि इसलिए कि जो लोग अत्यन्त परिपक्व लेखन
कर रहे हैं, उनका सम्मान कर सकूं और जो नवोदित हैं और कुछ
ख़ास अच्छा नहीं लिख रहे हैं उन्हें प्रोत्साहन दे सकूं .............ताकि उनका
शौक़ बना रहे ........क्या पता कब, कौन, क्या लिख डाले !
ब्लॉग पर मुझे सिर्फ़ तीन महीने हुए हैं । इन तीन महीनों में कोई 275 post
मैंने की है लेकिन जो स्नेह, जो दुलार ,जो अपनत्व और जो मार्ग दर्शन
मेरे वरिष्ठ और पुराने ब्लोगर्स ने मुझे दिया है उसकी महक से मेरा
पूरा घर महक रहा है । मैं 20-20 घंटे कंप्यूटर पर बैठा आप लोगों
को पढता हूँ ...क्योंकि मुझे इश्क़ हो गया है.........इश्क़ हो गया है इस विधा से
जिसने मुझे घर बैठे आप जैसे देश भक्त, मानवतावादी, प्रकृतिप्रेमी
और संवेदनशील लोगों से परिचित कराया....ख़ासकर 8 साल मैं
जिनसे दूर रहा , ऐसी मेरी सबसे अच्छी मित्र दीदी सुधा ढींगरा से
भी पुनः: सम्पर्क कराया .....
मंच ...हास्य कलाकारी मेरी रोज़ी रोटी है ....लेकिन कविता ..करुणा ..और
संवेदना का सृजन मेरी पूजा है, अर्चना है ,,,,मैं वचन देता हूँ हरकीरतजी,
कि जब तक आप लोगों का सान्निध्य मिलेगा, मैं हिन्दी ब्लोगिंग की
सेवा में वो हर योगदान दूंगा जो मेरे बूते में होगा ...........
बस ..............अब आँखों का बाँध फूट पड़ा है ..इसलिए सब धुंधला -धुंधला
दिखाई दे रहा है ...शेष फ़िर कभी................
-अलबेला खत्री
Labels: अपनी बात
ये इतनी भूलभुलैया और अकेला अवाम ..........
पंजा भी भूलभुलैया
कमल भी भूलभुलैया
साईकिल भी भूलभुलैया
लालटेन भी भूलभुलैया
हँसिया भी भूलभुलैया
हाथी भी भूलभुलैया
ये इतनी भूलभुलैया और अकेला अवाम
हरे राम हरे राम हरे कृष्णा हरे राम
हरे राम हरे राम हरे कृष्णा हरे राम ..ओ ओ ओ ओ
Labels: पैरोडी
आशीष खण्डेलवालजी, ये अच्छी बात नहीं है ......
देखो भाई इसमें मेरी कोई गलती नहीं है ।
मेरा दिमाग़ तो संजय बेंगाणी, अविनाश वाचस्पति और पवन चन्दन
ने ख़राब किया था । मैं तो इस क्षेत्र में एकदम नया नया हूँ ।
मुझे तो इन्हीं तीन महारथियों ने कहा था कि आशीषजी बहुत महान
टाइप के आदमी हैं । विद्वान होने के साथ साथ कोआपरेटिव भी बहुत हैं ।
तुम्हारी कोई भी समस्या हो तो उनसे ज़रूर कहना, वे सही सलाह
देंगे और तुम्हारी तकलीफ मिट जायेगी । अब मैं ठहरा सीधा आदमी,
इनकी बातों में आगया ।
कल चूँकि टिप्पणियां वगैरह खूब मिल गईं थीं इसलिए खुशी के मारे
रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी । मैंने सारे प्रयास कर लिए ।
नि:शब्द जैसी फ़िल्म भी देख डाली, लेकिन सब बेकार ...तभी मुझे
ध्यान आया कि आशीषजी से पूछ लूँ । क्योंकि उनके ही पास हम जैसे
ब्लोगरों की समस्या का हल मिलता है । तो भाई मैंने लगाया फोन और
बताई अपनी समस्या । आशीषजी ने बड़ी सहानुभूति पूर्वक मेरी बात
सुनी और बोले - कोई प्रॉब्लम नहीं , तुम एक काम करो, बाज़ार से
चार गोलियां ले आओ सल्फांस की । दो तो रात को सोते समय खा लेना
और दो सुबह उठ जाओ ........तो खा लेना ................ha ha ha ha ha ha
___आशीषजी ये अच्छी बात नहीं है .........हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
बैंक के आस -पास ही दिखता हूँ ...............
मैं गीतकार हूँ
गीत लिखता हूँ
महंगा लिखता हूँ
सस्ता बिकता हूँ
लेकिन जब कोई चेक मिल जाता है
तो जब तक न वो कैश हो पाता है
बैंक के आस-पास ही दिखता हूँ
_________है न शानदार पंक्तियाँ ........
_________पर मेरी नहीं वीनू महेन्द्र की हैं ....हा हा हा हा हा हा
Labels: हास्य कविता
संगीता पुरी ने खोला घड़ियों का राज़ .................
बी .एस.पाबला ने संगीता पुरी से टाइम पूछा ।
संगीताजी ने पहले अपनी कलाई घड़ी देखी,
फिर पर्स से एक घड़ी निकाली ...........देखी और कहा-
11 बज गए............
पाबलाजी बोले- टाइम बताने के लिए तो एक ही घड़ी काफ़ी है,
फ़िर दो क्यों ?
संगीताजी - तुम पुरूषों में यही तो प्रोब्लम है कि सामने वाले की
मजबूरी नहीं देखते ...अरे भाई, हाथ वाली घड़ी में घंटे वाली सुई नहीं है
और पर्स वाली में मिनट वाली नहीं है ..इसलिए दोनों घड़ियों को
देख कर टाइम सैट करना पड़ता है ...हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
आशीष खण्डेलवाल की हाज़िरजवाबी ......
आशीष खण्डेलवाल गत दिनों मुंबई आये थे ।
एयर पोर्ट पर उतर कर
उन्होंने टैक्सी वाले से पूछा - होटल अम्बेसडर का क्या लोगे ?
वो बोला- बेचना ही नहीं ।
आशीषजी - अरे वहां चलने का क्या लोगे ?
टैक्सी वाला - तीन सौ रूपये ..........
आशीषजी - तीन सौ कौन देगा ? मैं तो सिर्फ़ डेढ़ सौ दूंगा ।
टैक्सी वाला - डेढ़ सौ में कौन ले कर जाएगा ?
आशीषजी - तू बैठ, मैं ले चलता हूँ ..............हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
जायें तो जायें कहाँ ?
हो गया बदरंग आलम, है क़यामत सा समां
हर तरफ़ बिखरी है आतिश, जायें तो जायें कहाँ
धोते हैं अश्कों से अपने यारो ! हम ज़ख्मे-जिगर
क्या ख़बर अहले-ज़ुबां को हो गये हम बे-ज़ुबां
बेदरद -औ -बेमुरव्वत, बेवफ़ा-औ-बेरहम
बेहया-औ-बेशरम सब हो गये अहले-जहाँ
शमा से शोला हुआ दिल शोले से आतिश हुआ
आह ! से इतना जले, अब क्या जला पाये तवां
ठोकरों से रहगुज़र की दर तेरे तक आ गये
अर्ज़ यारब ! तेरे आगे कलम से कर दी बयां
Labels: ग़ज़लनुमा
मैं भी वतन का राज़ हूँ ..............
तुम हो अन्जाम-ए-वफ़ा मैं प्यार का आगाज़ हूँ
तुम हो कल की दास्ताँ, मैं आज की आवाज़ हूँ
लाखों बाजू मुझपे हावी थे बजाने के लिए
हाय ! लेकिन क्या करूँ ? गर खुरदरा सा साज़ हूँ
ऐ दलालों ! बेच दो मुझको भी तुम बाज़ार में
मैं भी हूँ बशर-ए-वतन मैं भी वतन का राज़ हूँ
खाक़ उसकी ज़िन्दगी पे, लाहनतें उस पर हज़ार
जो मुझे कहता रहा तकदीर का मोहताज़ हूँ
सरफिरे दहशत पसन्दों ने लगाई आग गर
चीर डालूँगा उन्हें , देखो मैं तीरन्दाज हूँ
ज़िन्दगी "अलबेला" तुम ज़िन्दादिली से जीयो तो
मौत भी आकर कहेगी "जीने का अन्दाज़ हूँ "
Labels: ग़ज़लनुमा
विदेशों में हिन्दी लेखन पर डॉ० सुधा ओम ढींगरा का सटीक अभिमत
अलबेला जी,
मैंने युवा पर लेख और आप के उत्तर पढ़े हैं।
उन्होंने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं।
बहुत से आलोचक ऐसा कहते हैं।
हो सकता है कि उन्होंने यू .के और अमेरिका का
साहित्य पढ़ा ही न हो।
आप हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ ,कथादेश, आधारशिला
कोई भी पत्रिका उठा लीजिये, आप को प्रवासी लेखक
मुख्य धारा से जुड़े मिलेंगे. कई लेखकों को तो मुख्य धारा का
मान भी लिया गया है. भारत में आए दिन पत्रिकाएँ प्रवासी अंक
निकाल रही हैं -क्यों ?
रचनाओं में दम-ख़म नहीं तो पत्रिकाएँ पाठकों को क्या परोसेंगी?
यह एक लम्बी बहस का मुद्दा है. बस इतना कहूँगी
कि हिंदी साहित्य कहीं भी रचा जा रहा है वह साहित्य है
-प्रवास या देश की कोई बात नहीं।
भारत में कई अच्छा लिखने वाले आलोचकों की बलि चढ़ गए
तो हम तो ठहरे परदेसी।
पाठक हैं न --जिनपर भरोसा है।
व्यस्तताओं के कारण कल उत्तर नहीं दे पाई।
क्षमा प्रार्थी हूँ।
सादर,
-सुधा ओम ढींगरा
--------------------------------------------------
___________________________________
आदरणीय दीदी सुधाजी,
नमस्कार ।
आपका अभिमत प्राप्त होते ही इसे मैं प्रकाशित कर रहा हूँ ।
हालाँकि मैंने जो लिखा उसकी भाषा कुछ कड़वी थी
लेकिन मेरी बात सही थी ....किसी को भी ये हक़ नहीं बनता कि वह
आप जैसे प्रवासी भारतीयों के हिन्दी प्रेम और साहित्य सृजन के
प्रति सतत समर्पण को अपमानित करे ।
वो तो उधर से कोई जवाब नहीं मिला वरना मैं उन्हें बताता कि आप लोग
किन परिस्थितियों में रह कर हिन्दी की ज्योत वहां जलाए हुए हैं ।
आपने जो महत्ती कार्य किया है , न केवल स्वयं को बल्कि अपने क्षेत्र के
कितने ही अन्य लेखकों को भी स्थापित करने का श्रम किया है ।
वह किसी से छुपा नहीं है । सिर्फ़ "मेरा दावा है " पुस्तक भी वे
देखलें तो आँखें फटी की फटी रह जायेंगी ।
खैर जाने दो......भगवान उन्हें सदबुद्धि दे चुका है शायद .....
सधन्यवाद,
-अलबेला खत्री
Labels: एक तमाशा मेरे आगे
शेफाली ने खीर बनाई लेकिन कपिला नहीं खा पाई
निर्मला कपिलाजी हल्द्वानी गईं तब शेफाली पाण्डेजी की मेहमान बनीं । शेफालीजी
ने कपिलाजी के लिए अपने हाथों से खीर बनाई ( सब हाथों से ही बनाते हैं ) लेकिन जैसे ही
कपिलाजी के आगे परोसी, कपिलाजी ने चम्मच भरा और नीचे डाल दिया , फ़िर चम्मच भरा,
नीचे डाल दिया ...जब कई चम्मच खीर नीचे डाली जा चुकी तो शेफालीजी से रहा न गया ।
वे बोली - कपिलाजी , खीर आपके खाने के लिए बनाई है, फ़र्श सींचने के लिए नहीं ।
कपिलाजी - हाँ लेकिन खाऊं कैसे ....खीर में चींटी है ...और निकल भी नहीं रही है....
शेफालीजी - निकलेगी कैसे ? चींटी खीर में नहीं, आपके चश्मे पर है ..........हा हा हा हा हा
हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
परमजीत बाली का भौम्पू वाला .......
परमजीत बाली के साथ कमाल का किस्सा हुआ ।
एक आदमी रोज़ सवेरे 9 बजे फोन करता और बाली जी से टाइम पूछता । वे कहते - 9 बजे हैं ।
तीन साल तक वो टाइम पूछता रहा, बालीजी बताते रहे , लेकिन परसों भड़क गए - ये क्या नाटक लगा रखा है
तीन साल से परेशान कर रहे हो, रोज़ सवेरे ठीक 9 बजे फोन करते हो, मैं रोज़ बताता हूँ कि 9 बजे हैं...... अरे भले आदमी , तुम्हें 9 बजे ही टाइम जानना होता है तो तुम मिल का भौम्पू क्यों नहीं सुनते ? जो रोज़ सवेरे 9बजे ही बजता है .
फोन कर्ता बोला - भाई जी , आप भड़कते क्यों हो ? मैं भौम्पू वाला ही हूँ और आपसे टाइम पूछ कर भौम्पू मैं ही बजाता हूँ ...............हा हा हा हा हा हा हा हा हा
?
Labels: चुटकुलाबाज़ी
संजय बेंगाणी की कनाडा यात्रा ..................
संजय बेंगाणी और समीरलाल की फोन-वार्ता ।
संजय -
समीरजी, मैं भी कनाडा आने और एक महीने तक वहां घूमने फिरने की सोच रहा हूँ । कितना खर्च आ जाएगा
समीर -
एक पैसा भी नहीं .......
संजय -
कैसे ?
समीर -
अरे यार ! सोचने के कैसे पैसे ?
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
माइकल जैकसन को सादर श्रद्धांजलि !
लक्ष्य यदि पक्का है
तो
दुक्की भी इक्का है
यह मेरा बनाया मुहावरा नहीं ...सार्वभौमिक सत्य है
श्रम साधकों ने
अपनी सिद्धि पताका
सदैव सफलता के शिखर पर फहराई है
पूर्ण पराक्रम के साथ ये बात दोहराई है
कि मानव को
महामानव होने का
जन्मसिद्ध अधिकार है
साधन सीमित
लक्ष्य असीमित
राहें दुष्कर
गति निरन्तर
इस रंग का
इस ढंग का
तपस्वी होना आपही का बूता था
जिनका हौसला आकाश छूता था
हाथ
जहाँ बढ़ा दिए......बज उठा शंख साफल्य का
चूंकि आपका इरादा
अडिग व पक्का बन कर उभरा
इसलिए आपका हर पत्ता
हुक्म का इक्का बन कर उभरा
मैं पूर्व का कवि
पश्चिम के गायक को
करुणा के सुरदायक को
पॉप के उन्नायक को
नृत्य के महानायक को
अर्थात
आपको
आपकी सृजन शक्ति को सलाम करता हूँ
हे माइकल जैकसन !
मैं आपकी स्मृति को प्रणाम करता हूँ
_________प्रख्यात पॉप गायक माइकल जैकसन के निधन पर __________
Labels: श्रद्धांजलि काव्य
देवी माता शारदे !
सुरों की सरिता आप,
शब्दों की संहिता आप
कवि की कविता आप देवी माता शारदे !
हंस पे सवार नित,
वीणा की झंकार नित
सुनती पुकार नित देवी माता शारदे !
थोड़ा सा मैं ज्ञान माँगूं,
विद्याधन दान माँगूं
इक वरदान माँगूं देवी माता शारदे !
जन पे ज़ुलम मिटे,
भारत से तम मिटे,
कभी न कलम मिटे देवी माता शारदे !
Labels: छंद-घनाक्षरी
अब अमन के फूल खिलाओ ...................
फिर गर्दन न आए अपनी गैर मुल्क़ के हाथों में
हो न जाये टुकड़े भारत के बातों ही बातों में
जुदा हुआ गर भाई - भाई खानदान फ़िर रहा कहाँ
जुदा हुए कश्मीर-असम तो हिन्दुस्तां फिर रहा कहाँ
मिल-जुल बीते सफ़र हमारा, ऐसी कोई राह बनाओ
हाथ से हाथ मिला के यारो वतन को चमन बनाओ
ख़ुद अपने ही हाथों से न घर में आग लगाओ
'अलबेला' इस गुलशन में अब अमन के फूल खिलाओ
Labels: देशभक्ति काव्य
राज भाटिया जी पक गए...................
राज भाटिया और ताऊ रामपुरिया गार्डन में टहल रहे थे ।
राजजी - ताऊ ! यार बहोत हो लिया यो रामप्यारी और पहेली वाला नाटक ..इब तो कुछ ऐसा काम करो जिससे अपना नाम भी गिनीज़ बुक महे आ जावै .....
ताउजी - मेरै पास एक लट्ठ छाप धांसू आईडिया सै ।
राजजी - के ?
ताउजी - यो आम का पेड़ दिख रह्या सै ना .....इस्पै आम बन कै लटक जा ...आज तक कोई नहीं
लटका होगा तेरा नाम गिनीज़ बुक महे आ जावेगा।
राज भाटिया जी लटक गए आम के पेड़ पे आम बन के , लेकिन दो ही मिनट में नीचे गिर पड़े ।
ताउजी - क्यों थक गए ?
राजजी - नहीं, पक गए .......................हा हा हा हा हा हा हा हा हा
...
Labels: चुटकुलाबाज़ी
राहत दो कलम के इल्म से .............
क़त्ल-ओ-गारत का यहाँ है मश्गला बहुत
ऐ अदीबो! तुम्ही राहत दो कलम के इल्म से
मुल्क़ में है वहशतों का ज़लज़ला बहुत
Labels: मुक्तक
समीरलालजी के पास है 25 साल पुराना अचार
कविवर राकेश खंडेलवालजी पिछले दिनों कनाडा में थे । वहां अपने उड़नतश्तरी वाले
समीरलालजी ने उनकी खूब आवभगत की और घर में भोजन वगैरह भी बढ़िया से कराया ।
भोजन करते-करते समीरजी ने अपनी श्रीमतीजी से कहा - प्रिये......घर में गुरु जी आए हैं ..ज़रा इन्हें
वो तो दिखाओ एतिहासिक अचार ।
भाभीजी तुरन्त एक कांच की बरनी लेकर आई - देखो भाई साहेब ....25 साल पुराना निम्बू का
अचार ।
राकेशजी बोले - ये क्या...सिर्फ़ दिखाओगे ही दिखाओगे ...चखाओगे नहीं ?
भाभीजी बोली - क्या बात करते हैं आप ! अगर चखाते ही रहते तो क्या ये इतना पुराना होता.....हा
हा हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
विदेशों में दो कौड़ी का हिन्दी लेखन.....भाग 5
देह नहीं देहेतर से मैं करता प्यार रहा हूँ
तुम में एक और जो तुम है, उसे पुकार रहा हूँ
एक झलक पाने के लिए सतत मेरी आत्मा अकुलाती
युग युग की पहचान प्राण की काम नहीं कुछ आती
तन के गाढ़ आलिंगन में भी उसका स्पर्श न मिलता
अधरों के चुम्बन में भी वह दूर खड़ी मुस्काती
_______तन के माध्यम से मैं जिसकी कर मनुहार रहा हूँ
अधरों का चुम्बन पीकर भी अधर तृषित रहते हैं
बन्ध आकंठ भुजाओं में भी प्राण व्यथित रहते हैं
देह स्वयं बाधा बन जाती स्नेह भरे हृदयों की
खुलते नहीं भाव जो छवि में अन्तर्हित रहते हैं
________जीत-जीत कर भी मैं जैसे बाज़ी हार रहा हूँ
मधुर व्यथा जो उफ़न-उफ़न कर शोणित में बल खाती
वह तुम से सम्पूर्ण तुम्हे ही पाने को अकुलाती
अनाघ्रात चिर सुमन प्राण का,चिर अनबूझ, अछूता
मोती में बन्दी पानी की धारा छुई न जाती
________तुम उस पार खड़ी हँसती हो मैं इस पार रहा हूँ
अंजलि में गिरता जल, ओंठों पर आकर उड़ जाता
एक द्वार खुलता है जैसे एक द्वार जुड जाता
पाकर भी अप्राप्य सदा जो छवि अदेय देकर भी
लगता जैसे लक्ष्य-निकट से मार्ग स्वयं मुड जाता
________मुग्ध शलभ मैं दीपशिखा पर चक्कर मार रहा हूँ
देह नहीं मैं देहेतर से करता प्यार रहा हूँ
तुम में एक और जो तुम है, उसे पुकार रहा हूँ
________
____________यह गीत अमेरिका के क्लीवलैंड ओहायो निवासी
गुलाब खंडेलवालजी का है जो कि भारतीय हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी हस्ती है ।
क्या यह गीत भी दो कौड़ी का है ?
बोलो न ......आप कुछ बोलते क्यूँ नहीं ?
अकेला मैं ही लगा हुआ हूँ प्रमाण देने में कि भारत के बाहर लिखा जाने वाला हिन्दी लेखन दो कौड़ी का
नहीं बल्कि दूर की कौड़ी का है ...मेरे पास उदाहरण की कमी नहीं है । आप तो सिर्फ़ एक बार यह
सिद्ध कर दीजिये कि जो लेखन मैंने आपको दिखाया है वह दो कौड़ी का है .....आप की ओर से जवाब
मिला तो सिलसिला ये प्यार का आगे बढेगा वरना ..यहाँ पूर्ण विराम अपने आप लग
जाएगा ....पाठक जन भी अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो मुझे संतोष होगा ....
सधन्यवाद,
-अलबेला खत्री
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विदेशों में हिन्दी लेखन दो कौड़ी का....भाग 4
विवादगर्भा गुरूघंटाल निरादरणीय श्री जी,
अमेरिका के ही टैक्सस के सेन एंटोनियो में रहते हैं गिरीश जौहरी , बहुत लम्बा चौड़ा परिचय है उनका लेकिन अभी मैं उनकी सिर्फ़ एक कविता आपके समक्ष अवलोकनार्थ प्रस्तुत करता हूँ :
भाव जहाँ पंक्ति में बन्ध कर
झूम रहे ज्यों सोम पिये हों
यमक, श्लेष, उपमा औ रूपक
शब्दों का आधार लिये हों
और हास्य की कोख जभी भी
व्यंग की काया जनती है ......तब ही तो कविता बनती है
हो प्रभात या हो संध्या
है नहीं प्रणय की बेला कोई
यौवन में उन्मत्त कुमारी
मन को जब लगती मनमोही
तभी लेखनी किसी कवि की
पल-पल स्याही में सनती है .......तब ही तो कविता बनती है
एक दूसरा रूप कवि का वह भी तो दिखलाना होगा
कवि ने ही युग को बदला है यह भी तो बतलाना होगा
प्रेम, प्रणय और सुन्दरता ही नहीं विषय कविता का होता
कर्महीन मानव बनता जब क्रान्ति बीज कवि ही तब बोता
है समाज का पतन हुआ अब एक प्रचण्ड भूचाल सा आया
मानव ही कारण इसका है मत कहना है ईश्वर माया
सज्जनता को दंड मिले और दुराचार जब आदर पाये
बेटा कहीं बिके पैसों में, बेटी कहीं जलाई जाये
दिव्य भोग लग रहे कहीं पर, कहीं लोग जूठन न पाते
भवनों का निर्माण कहीं हो, कहीं लोग जल में बह जाते
कवि कहीं भूखा सो जाता , कहीं दीवाली सी मनती है
________तब ही तो कविता बनती है
________तब ही तो कविता बनती है
पूर्ण कविता तो बहुत बड़ी है , मैंने कुछ ही अंश यहाँ दिए हैं ,,,गिरीश जी, मुआफ़ करना....
============क्या ये लेखन दो कौड़ी का है ?
=======सोचो, अपने सर पे हाथ रख कर सोचो ...
तब तक मैं ब्लॉगवाणी और चिटठा जगत पे अपने ब्लोगर मित्रों की रचनाएं पढ़ कर ज़रा टिप्पणियां दे कर आता हूँ ..........क्योंकि मैं उन्हें टिप्पणियां नहीं भेजूंगा तो वो क्या फालतू बैठे हैं जो मुझे भेजेंगे ......
आपके चक्कर में तो आज मेरी पूरी रात जाने वाली है ....हा हा हा हा हा हा
जल्दी ही मिलते हैं ..........क्रमश :
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विदेशों में दो कौड़ी का हिन्दी लेखन ..भाग 3
हाँ तो नित्यानंदजी महाराज,
नॉर्थ अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना में राले शहर निवासी डॉ० अफरोज़ ताज का नाम भी आपने नहीं सुना होगा ......उनकी भी कई पुस्तकें आ चुकी हैं ...
उनके कुछ शे'र मुलाहिजा फरमाइए :
किसी महफ़िल में अब तो चाँद का चर्चा नहीं रहता
कि जब से आपके चेहरे पे वह परदा नहीं रहता
ग़मों की आग से तप कर ही इन्सान जगमगाता है
अगर सूरज न होता, चाँद का चेहरा नहीं रहता
खिज़ाओं में ही बनते हैं ये सारे आशियाँ प्यारे
बहारों में तो सूखा एक भी पत्ता नहीं रहता
तुम्हारे सामने होता हूँ तो ho जाता हूँ तन्हा
तुम्हारी याद में रहता हूँ तो तन्हा नहीं रहता
अगर दीवार न होती , अगर हम साथ रह लेते
हमारे आँगनों में कोई भी झगड़ा नहीं रहता
हसीं हो ताज की तरहा मगर अन्दर से पत्थर हो
तुम्हारे दिल में कोई दर्द का मारा नहीं रहता
______________ताज साहेब का एक क़ता भी देखिये.....
मधुबन के गुलों में पसे-खुशबू नज़र आया
इस नीमबाज़ आँख में हर सू नज़र आया
चाहे ग़ज़ल हो मीर की, मीरा का भजन हो
हर लफ्ज़ के परदे में मुझे तू नज़र आया
__________________________क्या ये लेखन दो कौड़ी का है ?
सच बोलना....आपको मारीशस की क़सम है......
चलो और आगे बढ़ते हैं .....
________________चाय पी के मिलते हैं......जल्दी ही लौटता हूँ
____________________क्रमश:
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विदेशों में लेखन दो कौडी का.....क्रमश: से आगे 2
अल्पाहार करते - करते "युवा " की यह टिपण्णी मिली :
yuva June 25, 2009 1:36 AM
Yah achchhi rahi। aajkal bloggers 'do koudi' ko hi bechne men lag gaye hain। Chaliye isse Tiwari ji kee mahtta ka pata to chala. Saath hee prvaasi rachnaakaron ka naam ko baahar lane ka shukriya
पहले इस टिपण्णी पर गौर कर लें फिर आगे बढ़ेंगे....
आदरणीय युवा जी,
मैं बड़ी विनम्रता पूर्वक आपके सन्देश पर हथौड़ा मारना चाहता हूँ _______
पहली बात तो ये कि हम हिन्दी ब्लोगर लोग दो कौड़ी को बेचने में नहीं लगे हैं बल्कि बाहर से जो कूड़ा हमारे आँगन में ज़बरन फैंका गया है वो उसके असली वारिस को लौटा रहे हैं ।
दूसरी बात ये है कि एक मच्छर की महत्ता भी तब ज्ञात होती है जब वह हमें काटता है उसके पहले हम उस पर कहाँ ध्यान देते हैं ...इसलिए उस मच्छर को अपनी महत्ता को ले कर अन्धेरे में नहीं रहना चाहिये।
क्योंकि मच्छर की पहचान होते ही हम कछुआ छाप जला लेते हैं ताकि नाना पाटेकर के अनुसार 'साला एक मच्छर आदमी को ...........बना देता है ' कहीं हम पर ही न चरितार्थ हो जाए।
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर टिपण्णी की, मैं आपका हार्दिक धन्यवादी हूँ ....आते रहिएगा, अच्छा लगता है।
Labels: एक तमाशा मेरे आगे
हिमाचल प्रदेश में हास्य हंगामा
हिमाचल प्रदेश में हास्य हंगामा
NTPC जमथल में हास्य कवि सम्मेलन 19 जून 2009
माइक पर अलबेला खत्री, जगन्नाथ विश्व, आनंद गौतम, बलराम श्रीवास्तव और शशिकांत यादव
माइक पर शशिकांत यादव बाएं से दायें अली हसन मकरेंडिया, बलराम श्रीवास्तव, आनद गौतम, जगन्नाथ विश्व , अलबेला खत्री और व्यंजना शुक्ला
Labels: समाचार
क्यों जनाब ! क्या ये लेखन दो कौड़ी का है ?
परम निन्दनीय प्रोफ़ेसर निन्द्यानंदजी sorry नित्यानंदजी महाराज साहेब,
सुना है आप हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी तोप हैं , होंगे ......मुझे क्या, मैं तो एक मामूली तमंचा हूँ और आप से दो बात करना चाहता हूँ । बात क्या करनी है, खाली इतना कहना है कि विद्वानों को मूर्खों जैसी बातें नहीं करनी चाहिए ....दही के भुलावे में कपास नहीं खाना चाहिए ....बड़ी तकलीफ़ देता है ।
आपने कहा कि विदेशों में होने वाला हिन्दी लेखन दो कौड़ी का है । आपने क्यों कहा, किस मजबूरी में कहा , क्या साबित करने को कहा, इन बातों से मुझे कुछ लेना देना नहीं है ............मैं तो सिर्फ़ एक एतराज़नामा आपकी समझदानी तक भेज कर आपको अपने कीमती लफ्ज़ वापस लेने की मानसिकता में लाने की कोशिश कर रहा हूँ क्योंकि इससे मुझे ही नहीं बल्कि उन सब लोगों को बड़ी पीड़ा हुई है जो भारत से बाहर हो रहे हिन्दी लेखन से परिचित हैं और प्रभावित भी हैं ।
लगता है आपने मारीशस का ख़ूब नमक खाया है इसलिए जब भी डकार लेते हैं , वहीं के किसी हिन्दी लेखक का गुणगान बाहर आता है .........ये आपकी योग्यता या विद्वता नहीं बल्कि विवशता है, मजबूरी है जिसने आपकी सोच को संकुचित कर के उसे पंगु बना दिया है ....बनने चले थे भोज , पर गंगू बना दिया है .......कुल मिला के आप मेरे लिए क्रोध के नहीं करुणा के पात्र हैं उस कूप मंडूक की भान्ति जो जानता ही नहीं कि दुनिया उसके कूप से बहुत बड़ी है ।
न्यू यार्क में एक बिहारी बाबू हैं डॉ० बिजय कुमार मेहता ....शायद आपने उनका नाम सुना हो, उन्होंने यों तो बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं और हर पुस्तक अद्भुत लिखी है लेकिन कभी उनके द्वारा रचित महाकाव्य "तथागत" पढ़ना .....आपकी वो क्या कहते हैं उसे ...हाँ, आँखें ..............फटी की फटी रह जायेंगी । उनके एक गीत की पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं ..आप भी पढिये...............
बजा कन्हैया आज बांसुरी
वृन्दावन नगरी जलती है
कालिंदी के मधुर तटों की, मधु क्रीड़ा की बात न करना
ब्रजबाला के सजल नयन की, मधुव्रीड़ा की बात न करना
गोकुल की नूतन नगरी में
नवयुग की पीड़ा पलती है
राधा के मधुरिम नयनों में पवन मधु का नीर नहीं है
मधु भावों की मधु वेदना, सरस प्राण की पीर नहीं है
पच्छिम के इस प्रलय पवन में
हर प्रतिमा हिलती - डुलती है
कलि-युग की इस काल रात्रि में बोल! व्यथा क्या और बढेगी ?
निशा-निमिष में सूर्य क़ैद है, ज्योति-किरण बन कब निखरेगी ?
जागो हे! श्री देवकी नन्दन,
अश्रुधार क्षण-क्षण गिरती है
बजा कन्हैया आज बांसुरी,
वृन्दावन नगरी जलती है
_______________________________
___________________ये तो एक झलक है। गीत बहुत लम्बा है, बाद में पूरा पढ़ा दूंगा ।
क्या ये गीत दो कौड़ी का है ?
आप सोचो - विचार करो, तब तक मैं अल्पाहार कर लेता हूँ ।
मिलते हैं ...ब्रेक के बाद ...
_______________________क्रमश :
Labels: एक तमाशा मेरे आगे
भोलेनाथ चले आओ कि पुकारती है दुनिया....
रातों में महान रात
रात शिवरात सारी
रात गुणगान में गुज़ारती है दुनिया
अंग अंग में तरंग
उठती है चंग की सी
कंठ में भक्तिभंग उतारती है दुनिया
खड़ा है कराल कलि-
काल विकराल देखो
हाल कैसे जीवन गुज़ारती है दुनिया
हो चले अनाथ हम
नाथन के नाथ भोले
नाथ चले आओ कि पुकारती है दुनिया
Labels: छंद-घनाक्षरी
है बाकी अभी...............
अक़्स-ए-सावन उभरना है बाकी अभी
रुत का सजना, संवरना है बाकी अभी
उनकी क़ातिल अदाओं का दिल में मेरे
दशना बन के उतरना है बाकी अभी
उनकी गलियों से तो कल गुज़र आए हैं
अपनी हद से गुज़रना है बाकी अभी
उनके आने के झूठे भरम का ऐ दिल !
टूटना और बिखरना है बाकी अभी
जल्दबाजी न कर 'अलबेला' इस कदर
उनका इज़हार करना है बाकी अभी
Labels: ग़ज़लनुमा
हँसाने का हुनर रखते हैं ................
आग से आग बुझाने का हुनर रखते हैं
हम सितमगर को सताने का हुनर रखते हैं
मौत क्या हमको डराएगी अपनी आँखों से
मौत को आँख दिखाने का हुनर रखते हैं
कोई आँखों से पिलाता है, कोई होटों से
हम तो बातों से पिलाने का हुनर रखते हैं
कद्रदां हो तो कोई देखे क़रिश्मा अपना
ख़ुद रो कर भी हँसाने का हुनर रखते हैं
पाई है हमने विरासत में कबीरी यारो
जो भी है पास, लुटाने का हुनर रखते हैं
Labels: ग़ज़लनुमा
अपनी कोमल हथेली सजा लीजिये
ज़िन्दगानी नहीं अब क़ज़ा दीजिये
मुझको मेरे किए की सज़ा दीजिये
साथ चलने की तुमको ज़रूरत नहीं
चल तो सकता हूँ रस्ता बता दीजिये
पीस डालो मेरा दिल हिना जान कर
अपनी कोमल हथेली सजा लीजिये
ज़ख्म रिसते हैं मेरे तो रिसते रहें
आप गैरों के ग़म की दवा कीजिये
राह से गर हटाना ही चाहो जो तुम
पाँव से एक ठोकर लगा दीजिये
Labels: ग़ज़लनुमा
पास ही है ज़िन्दगी....................
हताश सी है ज़िन्दगी
उदास सी है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी में मौत की
तलाश सी है ज़िन्दगी
जाम भी है ज़हर का
गिलास भी है ज़िन्दगी
अनगढे हीरे हैं हम
तराशती है ज़िन्दगी
जिंदा भी लगती नहीं
न लाश ही है ज़िन्दगी
दूर क्यों जाते हो तुम
कि पास ही है ज़िन्दगी
Labels: ग़ज़लनुमा
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?
हर आदमी को अपनी माँ के हाथ की रोटियां पसन्द होती हैं,
मुझे भी है ।
मैंने कल अपनी पत्नी से कह दिया - रोटियां मेरी माँ जैसी बना दिया कर ।
वो बोली - बना दूंगी.............आटा अपने बाप जैसा गूँथ दिया कर _________हा हा हा हा हा हा हा
Labels: चुटकुलाबाज़ी
नकली नोटों के संकट का समाधान !
इन दिनों भारत में नकली नोट खूब तेज़ी से चल रहे हैं। आम आदमी के लिए बड़ी तकलीफ़ इस बात की है
कि हम तो पहचान नहीं पाते .....लेकिन बैंक में जमा कराने जाओ तो बैंक वाले पहचान लेते हैं और
इसका परिणाम ये होता है कि न तो बैंक वाले नोट वापस देते हैं, न ही जमा करते हैं ...उल्टे पुलिस को
सूचना देकर हमें फंसा देते हैं जैसे वो नकली नोट हमने अपने घर में छापे हों ............
हालाँकि इतने बड़े लोक तंत्र में बिना तंत्र की मिलीभगत के ये काम हो ही नहीं सकता ..लेकिन
इस समय अपना काम आग बुझाना है आग लगाने वाले को पकड़ना नहीं ।
लोक भी परेशान हैं और लोक सभा भी परेशान है , किसी के पास कोई तरीका नहीं है इस समस्या से
निपटने का । इसलिए मैंने पुराने ज़माने का एक नया रास्ता निकाला है । मेरा विश्वास है कि ये तरीका
हमारे असली देश में नकली नोटों के प्रचलन पर पूर्ण विराम लगा सकता है ।
क्या है ये तरीका ?
ये है तरीका :
1000 और 500 के नोट तुरन्त बन्द करो ......और उसके स्थान पर 5000, 10000, 50000
और 100000 के सिक्के शुरू करो ...ये सिक्के शुद्ध सोने के होने चाहिए और सोने का वज़न उस
मूल्य के बराबर नहीं तो कम से कम आस-पास तो होना ही चाहिए ।
इस तरीके से कई लाभ एकसाथ होंगे । जैसे :
1. नोटों की बार-बार होने वाली महंगी छपाई के खर्च बचेंगे और भारी संख्या में कागज़ों की
लागत के कारण कटने वाले वृक्षों का बचाव होगा . यानी पर्यावरण को भी फ़ायदा होगा ।
2. नकली नोट को छापना आधुनिक तकनीक के कारण सरल है, लेकिन उसे पहचानना मुश्क़िल है
जबकि सोने के सिक्के बनाना मुश्क़िल होगा और पहचानना सरल होगा लिहाज़ा इस काले धन्धे
पर रोक लगेगी ।
3. नोटों में भार भी ज़्यादा होता है और लाखों रुपया कहीं लाना लेजाना हो तो वह जगह भी खूब
घेरता है साथ ही चोरी-चकारी का भय भी रहता है जबकि बड़े मूल्य के सिक्कों के लिए तो धारक की
जेब ही पर्याप्त रहेगी , कोई सूटकेस भरने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ।
4. काग़ज़ के नोट का सदैव अवमूल्यन होता है लेकिन सिक्के के अवमूल्यन का सवाल ही पैदा नहीं
होता बल्कि अभिवृद्धि ही होगी ......जैसे जैसे सोने का भाव बढेगा, सिक्के का भाव भी स्वमेव बढेगा ।
5. नकली नोट इसलिए छापे जाते हैं क्योंकि उनमें लागत कम आती है और चलाना सरल होता है
जबकि सोने के सिक्के बनाना बड़ा महंगा सौदा होगा कोई इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहेगा
इसलिए ये तरीका ठीक रहेगा ।
________________देखो भाई, अपना काम है समस्या का हल ढूँढना जो अपन ने ढूंढ लिया
। बाकी काम है सरकार का ....अगर सरकार वास्तव में इस संकट को ख़त्म करना चाहती है तो
मेरी बात मान ले और अगर सरकारी लोग ख़ुद ही इस चोरबाजारी में लिप्त हैं तो मैं क्या मेरे
स्वर्गवासी पिताजी भी कुछ नहीं कर सकते .............हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
पाठक कृपया क्षमा करें ...तकनीकी गड़बड़ के कारण आलेख की सैटिंग बे तरतीब सी है
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