जिगर में दर्द नहीं ,नज़र उदास नहीं
भरा है जाम मगर लबों पे प्यास नहीं
है ज़ोर क्या कि सनम संगदिल निकले
सितम है ये कि हम संग तराश नहीं
भरा है जाम मगर लबों पे प्यास नहीं
है ज़ोर क्या कि सनम संगदिल निकले
सितम है ये कि हम संग तराश नहीं
Labels: मुक्तक
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