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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

ताज़ा टिप्पणियां

Albela Khatri

अब तो शमा जलाने का वक़्त आ गया

तेग़-ओ-खंजर उठाने का वक़्त आ गया

लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया


सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी

अब तो नज़रें मिलाने का वक्त आ गया


ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा

मुल्क़ में अमन lane ka waqt aa gaya


qatl-o-zulmat ke saye hatade koi

ab toh mausam suhane ka waqt aa gaya


kyon andhere men baithe ho 'albela' tum ?

ab toh shama jalane ka waqt aa gaya



9 comments:

रंजना June 4, 2009 at 2:39 PM  

Waah !! Bahut khoob....

bahut hi umda is gazal ke liye badhai.

Science Bloggers Association June 4, 2009 at 3:55 PM  

आप शमा जलाएं, वो खुद ब खुद चले आएंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

संजय बेंगाणी June 4, 2009 at 4:16 PM  

क्या खूब!

M Verma June 4, 2009 at 4:28 PM  

अलबेला जी
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई
आधा ग़ज़ल रोमन मे दिख रहा है. शायद प्रकाशन मे त्रुटि रह गई है

neeraj1950 June 4, 2009 at 5:28 PM  

बहुत उम्दा ग़ज़ल जनाब...मुबारबाद कबूल करें...
नीरज

Shruti June 4, 2009 at 7:26 PM  

Isi bahane ab to comment daalne ka bhi waqt aa gaya..
good one :)

जयंत - समर शेष June 4, 2009 at 9:20 PM  

Waaaaah.

Kyaa baat hai.
Sach kahaa... waqt aa gayaa hai.

डॉ टी एस दराल June 4, 2009 at 9:29 PM  

सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक्त आ गया

बिलकुल सही कहा खत्री जी.
आखिर कब तक यूँहीं खामोश रहे और सहे हम.

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif June 5, 2009 at 8:53 AM  

बहुत अच्छे अलबेला जी, बहुत खुब मज़ा आ गया

आधी नज़्म हिन्दी मे है आधी रोमन मे....क्या हुआ चलते - चलते हिन्दी बन्द हो गयी क्या?

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