तेग़-ओ-खंजर उठाने का वक़्त आ गया
लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया
सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक्त आ गया
ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा
मुल्क़ में अमन lane ka waqt aa gaya
qatl-o-zulmat ke saye hatade koi
ab toh mausam suhane ka waqt aa gaya
kyon andhere men baithe ho 'albela' tum ?
ab toh shama jalane ka waqt aa gaya
लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया
सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक्त आ गया
ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा
मुल्क़ में अमन lane ka waqt aa gaya
qatl-o-zulmat ke saye hatade koi
ab toh mausam suhane ka waqt aa gaya
kyon andhere men baithe ho 'albela' tum ?
ab toh shama jalane ka waqt aa gaya
9 comments:
Waah !! Bahut khoob....
bahut hi umda is gazal ke liye badhai.
आप शमा जलाएं, वो खुद ब खुद चले आएंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
क्या खूब!
अलबेला जी
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई
आधा ग़ज़ल रोमन मे दिख रहा है. शायद प्रकाशन मे त्रुटि रह गई है
बहुत उम्दा ग़ज़ल जनाब...मुबारबाद कबूल करें...
नीरज
Isi bahane ab to comment daalne ka bhi waqt aa gaya..
good one :)
Waaaaah.
Kyaa baat hai.
Sach kahaa... waqt aa gayaa hai.
सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक्त आ गया
बिलकुल सही कहा खत्री जी.
आखिर कब तक यूँहीं खामोश रहे और सहे हम.
बहुत अच्छे अलबेला जी, बहुत खुब मज़ा आ गया
आधी नज़्म हिन्दी मे है आधी रोमन मे....क्या हुआ चलते - चलते हिन्दी बन्द हो गयी क्या?
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