मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
तूने बख्शा नूर हृदय में लेकिन मैंने चुनी सियाही
तूने सैर चमन की बख्शी लेकिन मैंने कीचड़ चाही
सौ सौ क़समें खायीं लेकिन एक क़सम भी नहीं निबाही
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
मालिक ! तेरी एक झलक में लाखों सूर समाये हैं
ऐसी एक झलक के दर्शन ख़ुद मैंने भी पाये हैं
लेकिन मैं वो ज्योत कि जिस पर तम के गहरे साये हैं
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
तू है दयालु ,परम कृपालु , तेरे क़रम का अन्त नहीं
मैं छोटा ,मेरे पाप भी छोटे ,दोष की सूचि अनन्त नहीं
सत्य में शक्ति, शक्ति में भक्ति ,झूठ कभी बलवन्त नहीं
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
एक बार फ़िर अवसर बख्शो ,बख्शो प्रेम पियाला
तम हो जायें दूर जगत के ,घट में होय उजाला
तन की सारी चाहो-हवस का कर डालो मुंह कला
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
मैं तेरा अपराधी
तूने बख्शा नूर हृदय में लेकिन मैंने चुनी सियाही
तूने सैर चमन की बख्शी लेकिन मैंने कीचड़ चाही
सौ सौ क़समें खायीं लेकिन एक क़सम भी नहीं निबाही
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
मालिक ! तेरी एक झलक में लाखों सूर समाये हैं
ऐसी एक झलक के दर्शन ख़ुद मैंने भी पाये हैं
लेकिन मैं वो ज्योत कि जिस पर तम के गहरे साये हैं
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
तू है दयालु ,परम कृपालु , तेरे क़रम का अन्त नहीं
मैं छोटा ,मेरे पाप भी छोटे ,दोष की सूचि अनन्त नहीं
सत्य में शक्ति, शक्ति में भक्ति ,झूठ कभी बलवन्त नहीं
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
एक बार फ़िर अवसर बख्शो ,बख्शो प्रेम पियाला
तम हो जायें दूर जगत के ,घट में होय उजाला
तन की सारी चाहो-हवस का कर डालो मुंह कला
मैं तेरा अपराधी दाता
मैं तेरा अपराधी
2 comments:
बहुत खूब अलबेला भाई। क्या आत्म स्वीकृति का भाव है? बेहतर प्रवाह है। वाह। एक नजर इस भाव पर भी-
गलती जो भी मैं करता हूँ दिया तुम्हीं ने ज्ञान।
कहते हैं पत्ता भी हिलता जब चाहे भगवान।
इस जीवन में तेल तुम्हारा मैं तो केवल बाती।
कैसे मैं अपराधी भगवन फिर कैसे अपराधी?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
इसे कहते हैं पूर्ण समर्पण। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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