बुरा-भला कह रहे शमा को कुछ पागल परवाने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
बन्द किवाड़ों को कर बैठे, घर घुस कर मर्दाने लोग
पानी बिकने लगा यहाँ पर,कसर हवा की बाकी है
भटक-भटक कर ढूंढ रहे हैं गेहूं के दो दाने लोग
और पिलाओ दूध साँप को , डसने पर क्यों रोते हो?
कहना माना नहीं हमारा , देते हैं यों ताने लोग
कैसा है ये चलन वक़्त का ,समझ नहीं कुछ आता है
अन्धों में राजा बन बैठे, आज यहाँ कुछ काने लोग
2 comments:
पानी बिकने लगा यहाँ पर कसर् हवा की बाकी ह
भटक भटक कर ढूँढ रहेहैं गेहूँ के दो दाने लोग
बहुत बडिया और सटीक अभिव्यक्ति है बधाई
बात हवा की हो तो ऑक्सिजन पार्लर खूल गए है.
बाकी रचना जोरदार है.
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