नन्हे-नन्हे कन्धों पे हैं
बड़े-बड़े बस्ते लदे
बच्चों को ये महंगी पढ़ाई मार डालेगी
जाओगे सुनार की
दूकान पे तो यार
तार हो या हार,सोने की घडाई मार डालेगी
मण्डल के बण्डल से
बच निकले तो हमें
मन्दिर-ओ-मस्जिद की लड़ाई मार डालेगी
और रामजी ने इन
सब से बचा लिया तो
मल्लिका की मस्त अंगड़ाई मार डालेगी
7 comments:
बहुत खूब।
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
यों बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मल्लिका की मस्त अंगड़ाई मार डालेगी ओह गजब लिखा है जनाब
बाकी कुछ बचा तो... अंगडाई मार गई . हा हा
waah kya khoob likha hai
waah
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अलबेला जी,
ख़ुदा ख़ैर करे, आप पर मल्लिका जैसी हजारों अंगड़ाईयां कुर्बान हों |
बहुत अच्छी तुकबंदी की है आपने
बधाई ही बधाई !!
नन्हे-नन्हे कन्धों पे हैं
बड़े-बड़े बस्ते लदे
इंसान तो हम हो न सके
रचते हैं रोज गधे !
कौन मल्लिका ? :)
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